| बिचड गए हम कुछ इस तरह |
होटों पे मुस्कान लेकर ,
कही दूर , किसी मंज़िल,
प्यार के डोर में बंधे हम |
एक दुसरे से जुड़े ,
जैसे फूल और मेहेक हम |
मुर्झानेका अब तक न डर ,
साथ थे हर समां हर पल |
तन्हाई ज़िन्दगी का कोई एहसास न था ,
बिचदने का कोई आस न था |
जानते थे सूरज अब हे उगा ,ढलने में अभी भी वक़्त बोहोत था |
अंजाम जानकर भी अनजान रहे हम ,
ये पलों को आँखों में समेट लिए हम |
मंजिल अब दूर था ,
पर बदनसीब ये फूल था |
आकर किसी ने निचोड़ दिया ,
ढलने से पहले ही मुरझा गया |
न रहा वोह मेहेक , न वोह ख़ूबसूरती , ऐसे ही ...
दिल में आसू लिए बिचड़ गए हम |
किसी और को खुश करने के लिए ,
अपनी खुशबू और महक दे गए हम |
सूरज अब ढल गया ,
हमेशा के लिए जैसे अँधेरा चा गया |
घुट घुट के जीते हे हम ,
एक दुसरे की सलामती चाहते हे हम |
खुदा का क्या ये खेल हे ,
ज़िन्दगी कितनी बेरंग हे |
कहा से कहा ले जाती हे ये ज़िन्दगी ,
एक पल खुशिया तोह दुसरे पल गम दे जाती हे ये ज़िन्दगी |
बिचड गए हम कुछ इस तरह ,
दूसरों के खुशी के लिए दे दिया ये कुर्बान … |
लिकनेवाली : - आद्रिका राइ
good one...Good selection of pictures...
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