न समझ दिल
हम अपने ज़ात में रहते तोह कितना अच्छा होता
दुखों ने बाँट लिया है तुम्हारे बाद हमें
तुम्हारे हाथ में रहते तोह कितना अच्छा होता
ठान ली है तुमने जो दूर जाने की
दिल येह मेरा हैरान रह गया
क्या थी मजबूरी
येह दिल न समझ पाया
जब खून भरी चोट लगती है
दिल घबराता है लगी तुम्हे तोह नहीं
कोशिश है इस दिल को संभालने की
पर लाख मनाओ रो पड़ती है
पास रह कर भी मिल न पाए
दूर तुम इतना होगए
अब जो कुछ घंटो के फासलें हैं
इन से भी डर लगने लगा है
हर दिन होती हूँ तुम्हारे यादों के साथ
दिल करता है हो जाए कभी तुमसे बात
क्यूँ इतने रूठे हुए हो
दिल के इतने करीब रह कर भी दूर हो
हर वक़्त होती है कोशिश
कोशिश इस दिल को संभालने की ....
द्वारा लिखित : मिस्बाह
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