टूटी उम्मीद
मैं थी अनजान इन लोगों से
कभी न सामना किया मुश्किलों से
थी मैं अपनी ही दुनिया में
दूर थी अजनबी रिश्तों से
तकदीर ने लिया इम्तिहान
एह से बढ़कर एक थे सवाल
मुरझा गयी मैं शाम ढलने पर
फिर जोड़ लिया अपनी हिम्मत
बीते पल बीते साल
अपने बने दिल के पार
नए रिश्ते लायी बहार
चली मैं नदी के उस पार
तनहा ज़िन्दगी में कोई न पाया
घम को ख़ुशी में भी छुपाया
लेकर मैं बैठी थी उम्मीदें
आके कोई दे मुझे सहारा
सुनली मेरी बात
आ गया कोई थामने मेरा हाथ
शायद कुछ ही दिनों का मेहमान
देने पल दो पल का साथ
रह गयी मैं अकेली
कोई इस पार न उस पार
पलकों में छुपाये आसूं
काट रही हूँ ये सूनाह राह !
द्वारा लिखित :- आद्रिका राइ
Nice one...with deep meanings...
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