साथ हु मे जब अपनी ...
किसका इंतज़ार है ...क्यों ये जिया बेकरार है...
आज न आया है कोई ...
शायद न आयेग आनेवाला दिन कई ...
दिन का सूरज डल गया...
शाम का चाँद बी चला गया है ...
चेहरा ये खिली खिली सी अब जड रहा है।
कोई आये या न आये; ये ज़िंदगी फिर चलेगी ...
कुछ इस कदर कि वो कोई बी खुद पे हसेगा ...
इस कदर कि वो कोई बी खुद को रोक नहीं पायेगा ...
साथ हु मे जब अपनी ...
क्यों कोई अपना कोई पराया।
द्वारा लिखित : रंजिता हेग्डे आर.
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