इंतज़ार
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार ...
है इसका कोई अंत ...?
इंतज़ार उन ख्वाहिशों का ?
इंतज़ार वक़्त का ?
इंतज़ार दोस्त का ?
इंतज़ार उसके लौटने का ?
हर तरफ है इंतज़ार ...!
नहीं है कोई पल इंतज़ार का,
नहीं है कोई दिन इंतज़ार का,
बिन इंतज़ार न पूरे होंगे दिन,
बिन इंतज़ार न पूरी होंगी रातें ...
कभी लगती है येह इंतज़ार मीठी,
तोह कभी लगती है कडवी।
लाक कोशिश हो पाने की,
पर पाता तब है, जब पाना होता है ...
है किसका कसूर ?
वक़्त का या हमारा ?
इंतज़ार से हुई है आदत,
हुई है इंतज़ार से चाहत ...!
द्वारा लिखित : मिस्बाह
Woah......
ReplyDeleteNever knew I had a poet friend