येह रिश्ते हैं खोटे
जहाँ भी जाओ मिलते हैं झूठे सच्चा किसको हम मानते हैं
तोड़ते हैं वोह हमारे भरोसे
अपने, अपने न होते हैं
पराये तो बिचड़ जाते हैं
किस पर करें विश्वास
जब कोई न दे साथ
बंदिशें हज़ार
बंद दरवाज़ों की तरह
कभी जी न पायी मैं
अपनी जीव न अपनी अंदाज़
उड़ना चाहकर भी
उद्द न पाऊं
जीना चाहकर भी
जी न पाऊं
रिश्ते नाते तो नाम के हैं
अपने तोह अपने न होते हैं
हर कोई जीता है तो
सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ...
द्वारा लिखित :- आद्रिका राइ
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